सभी मूलनिवासियों को जै भीम 🐘🐘🐘
आज हम आपको ऐसे खिलाड़ी की गाथा बताने वाले हैं जिसे सुनकर आपके पैरों में अपार भीम शक्ति आ जाएगी और आप किसी को भी अपनी लात मार कर इस भीमाण्ड के बाहर फेंक देंगे।
1947 में देश आजाद हो चुका था लेकिन गोवा अभी भी पुर्तगालियों के कब्जे में था इसी गोवा में हमारे कई मूलनिवासी भाई रहते थे।
1961 में बाबा साहेब ने अपनी भीम शक्ति से गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त करवा लिया और पुर्तगाली गोवा छोड़ कर चले गए, उसी में गलती से एक दलित परिवार भी पुर्तगाल में चला गया।
कुछ समय पश्चात बाबा साहेब को अपने उस दलित परिवार की याद आयी और उन्होंने नीली डायरी से एक पन्ना फाड़ा और उसकी नाव बनाई। नाव पर सवार होकर पुर्तगाल पहुंचे।
वहां उन्होंने फुटबॉल खेलते हुए एक बालक को देखा जिसके खेल को देख उनकी आंखें चुंधिया गयी। उस खिलाड़ी का नाम था 'दलितियानो भीमाल्डो'।
बाबा साहेब उसके खेल से खुश हुए और अपने दलित भाइयों के फुटबॉल क्लब में शामिल करने की ठान ली । उस क्लब का नाम था 'मूलनिवासी यूनाइटेड फुटबॉल क्लब' (MUFC)। दलितियानो ने अपने क्लब के लिए खेलते हुए कई खिताब जीत लिए।
पर बाद में मनुवादियों ने उस क्लब का नाम मैनचेस्टर यूनाइटेड फुटबाल क्लब कर दिया और उस पर कब्जा कर लिया। इससे बाबा साहेब को बड़ी पीड़ा हुई और तुरंत दलितियानो को वो क्लब छोड़ने की सलाह दी।
दलितियानो ने सलाह मानते हुए 2009 में क्लब छोड़ दिया।
बाद में बाबा साहेब ने उसे स्पेन देश मे भेजा। स्पेन में मूलनिवासियों के लिये आरक्षण नहीं था और सारे क्लब में सिर्फ मनुवादी खिलाड़ी भरे पड़े थे। वो मूलनिवासियों को क्लब में घुसने तक नहीं देते थे। मूलनिवासियों से लड़ाई के चलते ही मनुवादियों ने क्लब का नाम रखा 'बाहर से लो ना'।
उसी क्लब में एक स्वर्ण खिलाड़ी था जो फुटबॉल जगत में राज कर रहा था,जिसका नाम था 'लियो नील मिश्रा'।
बाबा साहेब ने वहां भी आरक्षण लागू करने के लिए वहां की सरकार पर दबाब बनाया और मनुवादियों को सबक सिखाने के लिए 'रियल में दरिद्र' नाम के क्लब की स्थापना की। दलितियनो 'रियल में दरिद्र' क्लब में शामिल हो गया।"
बाद में दलितयानों ने अपने खेल से मनुवादियों के क्लब "बाहर से लो ना" का वर्चस्व खत्म कर दिया और 'रियल में दरिद्र' क्लब की गरीबी खत्म कर उसे अमीर बना दिया और उस क्लब का नाम रियल में दरिद्र से रियल मेड्रिड हो गया।
फुटबॉल में जिसे आज फ्री किक कहा जाता है,असल में उसका नाम 'मनुवादियों को लतियाओ' था और 'मनुवादियों को लतियाने' का मौका सिर्फ मूलनिवासियों को ही मिलता था। दलितियानो ने 'मनुवादियों को लतियाने' का फायदा उठा कई गोल मारे।
मगर कपटी मनुवादियों ने यहां भी अपने कपट से 'मनुवादियों को लतियाओ' का नाम फ्री किक कर दिया।
भाइयो इस जाबांज दलितियानो भिमाल्डो की कहानी शेयर कर सारे भीमाण्ड में फैला दें ताकि दुनिया भर के दलित खिलाड़ी इससे प्रेरणा ले कर हर खेल में मनुवादियों का वर्चस्व ख़त्म कर सकें।
चढ़ लियो नील मिश्रा की छाती पर
बटन दबाओ हाथी पर
जै भीम ! जै रिजर्वेशन